نـــــو بـــهـــــاران آمــــده بــــاده بـــنــــوش
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هـــم حـــدیث این زمیـــن میدار گـــوش
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چون زمســـتان رو بـــه سردی مینــــهـاد
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ســوز و سرمـا برد از سرعقـل و هــوش
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یـــخ زده هـــم جسم و هم جان همزمــان
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چشمـــه ها از برف و بـوران بی خـروش
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سبزه خُفته، خشک و بی جان هر درخـت
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خـــاک مُرده، آب یـــخ، صـــحرا خمــوش
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چـــون همــــه جنبـنــــدگان در لانــــه ای
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بلبـــلان در آشیــان بی جنــب و جـوش
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روزهــــا تـاریــــک و شب دیـــجور گـشـت
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منتـــظر چشمـــان به در بــهــر سـروش
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نــــو بــهـــــاران آمــــد از ره بـهـــــر تـــــو
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بــــهــــر تـــو آورده پـــیــــغــام ســروش
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تــــا لبــــاس تــــازگــی بــــر تــــن کنـــی
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خوش نسیمی مینوازد چشــم و گـوش |
سبــــزه خنــــده مـــیزند بــــر نــو بـــهار
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ابــــــر وا کــــرده گــــره از زلـــــف دوش |
مــــیزنــــد بـــاران به هر دشت و چـمـن
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درس بخشش، هم حدیث عشق نـوش |
نـــو بهــــار آورده بــــا خــــود ســـرخ گــل
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ساغـــر مستـــی بـریـــزد مـــی فـروش |
خــــرم و ســــر سـبـز شد دشت و دَمَــن
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هـــم به زیر آمـــد در آن چـــرخ چمـوش |
چـــون زمیـــن رام آمــــده از نــــو بـهــــار
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حیـــف باشـــد تو چنان باشی که دوش |
چـــون طبیـــعت نـــو شکوفا شد به دهـر
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مـــر جـــوانه بایدت بـــر چشــم و گوش |
دیــــد نــــو، افـــکــــار نــــو، کــــردار نـــو
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در طـــریق معـــرفت بـــا جـــان بــکوش
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